उच्च शिक्षा का महत्व
👉उच्च शिक्षा से तात्पर्य स्नातक और परस्नातक शिक्षा से होता है। उच्च शिक्षा सभी के लिए बहुत आवश्यक होती है। इससे अनेक फायदे होते हैं। एक तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने से नौकरी पाने की संभावना बढ़ जाती है।
😇इसके साथ ही व्यक्ति खुद खुद का बिजनेस स्थापित कर सकता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने से व्यक्ति बुद्धिजीवी बन जाता है और अपने साथ साथ समाज का भी विकास कर पाता है।🙋♀️
😮उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों की भूमिका👇🏻👇🏻
1. शिक्षा प्रदाता दो प्रकार के हो सकते हैं- सरकारी और निजी। निजी स्कूल सरकार के आंशिक वित्त पोषण से चलाए जा सकते हैं जिन्हें एडेड कहा जाता है और पूर्ण रूप से स्व वित्त पोषित भी हो सकते हैं जिन्हें अन-एडेड कहा जाता है सरकारी स्कूलों की स्थापना और प्रबंधन सरकार करती है। वही इन स्कूलों को अनुदान भी देती है। जब सरकार के पास शिक्षा की सार्वभौमिक सुविधा प्रदान करने के लिए संसाधन सीमित होते हैं तो निजी क्षेत्र की मदद ली जाती है। अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं में निजी क्षेत्र लाभ के उद्देश्य से काम करता है। लेकिन जब शिक्षा की बात आती है, तो निजी क्षेत्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह गैर लाभकारी उद्देश्य से कार्य करेगा।
🙋♀️👉कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि विनियमन (रेगुलेशन) की कमी होने के कारण निजी क्षेत्र के कुछ स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फीस अधिक होने के कारण अनेक विद्यार्थियों की पहुंच उन तक नहीं हो पाती। दूसरी तरफ कुछ का यह मानना है कि उच्च शिक्षा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इस क्षेत्र में निवेश और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है।
🤔वर्तमान में मानव संसाधन विकास संबंधी स्थायी समिति ‘उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र की भूमिका’ की पड़ताल कर रही है। इस संदर्भ में हम भारत में उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र की भूमिका का एक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं। इस नोट में शिक्षा क्षेत्र की विनियामक संरचना की व्याख्या की गई है और उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी से संबंधित प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया गया है।💯✔
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1. शिक्षा प्रदाता दो प्रकार के हो सकते हैं- सरकारी और निजी। निजी स्कूल सरकार के आंशिक वित्त पोषण से चलाए जा सकते हैं जिन्हें एडेड कहा जाता है और पूर्ण रूप से स्व वित्त पोषित भी हो सकते हैं जिन्हें अन-एडेड कहा जाता है सरकारी स्कूलों की स्थापना और प्रबंधन सरकार करती है। वही इन स्कूलों को अनुदान भी देती है। जब सरकार के पास शिक्षा की सार्वभौमिक सुविधा प्रदान करने के लिए संसाधन सीमित होते हैं तो निजी क्षेत्र की मदद ली जाती है। अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं में निजी क्षेत्र लाभ के उद्देश्य से काम करता है। लेकिन जब शिक्षा की बात आती है, तो निजी क्षेत्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह गैर लाभकारी उद्देश्य से कार्य करेगा।
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