Tuesday, May 19, 2020

करोना का बढ़ता कहर बेरोजगारी के साथ😥

बढती बेरोजगारी 
           
         👉जब देश में कार्य करनेवाली जनशक्ति अधिक होती है किंतु काम करने के लिए राजी होते हुए भी बहुतों को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता, तो उस विशेष अवस्था को 'बेरोजगारी' (Unemployment) की संज्ञा दी जाती है। ऐसे व्यक्तियों का जो मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य और इच्छुक हैं परंतु जिन्हें प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता, उन्हें 'बेकार' कहा जाता है।

बेेरोजगारी की व्याख्या 
         👏मजदूरी की दर से तात्पर्य प्रचलित मजदूरी की दर से है और मजदूरी प्राप्त करने की इच्छा का अर्थ प्रचलित मजदूरी की दरों पर कार्य करने की इच्छा है। यदि कोई व्यक्ति उसी समय काम करना चाहे जब प्रचलित मजदूरी की दर पंद्रह रुपए प्रतिदिन हो और उस समय काम करने से इन्कार कर दे, जब प्रचलित मजदूरी बारह रुपए प्रतिदिन हो, ऐसे व्यक्ति को बेकार अथवा बेरोजगारी की अवस्था से त्रस्त नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त ऐसे भी व्यक्ति को बेकार अथवा बेरोजगारी से त्रस्त नहीं कह सकते जो कार्य तो करना चाहता है परंतु बीमारी के कारण कार्य नहीं कर पाता। बालक, रोगी, वृद्ध तथा असहाय लोगों को "रोजगार अयोग्य" (unemployables) तथा साधु, पीर, भिखमंगे तथा कार्य न करनेवाले जमींदार, सामंत आदि व्यक्तियों को पराश्रयी कहा जा सकता है।

बेरोजगारी की हानिया
🤔बेरोजगार होने पर हम सरकार पर दायित्व होते हैं सरकार बेरोजगार युवाओं के ऊपर बहुत धन व्यय करती है जैसे गैहू को 18 रुपया में खरीद कर 1.5 रुपये में देती है । जिससे सरकार का बहुत नुकसान होता है।

बेरोजगारी के भेद 

   👉 बेरोजगारी का अस्तित्व श्रम की माँग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है। बेरोजगारी के दो भेद हैं - असंतुलनात्मक (फ्रिक्शनल) तथा ऐच्छिक (वालंटरी)। असंतुलनात्मक बेरोजगारी श्रम की माँग में परिवर्तन के कारण होती है। ऐच्छिक बेरोजगारी का प्रभाव उस समय होता है जब मजदूर अपनी वास्तविक मजदूरी में कटौती को स्वीकार नहीं करता। समग्रत: बेरोजगारी श्रम की माँग और पूर्ति के बीच असंतुलित स्थिति का प्रतिफल है।
प्रोफेसर जे.एम. कीन्स "अनैच्छिक बेरोजगारी" को भी बेरोजगारी का भेद मानते हैं। "अनैच्छिक बेरोजगारी" की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है -
'👉जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।'
यदि कोई व्यक्ति किसी उत्पादक व्यवसाय में कार्य करता है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह बेकार नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को पूर्णरूपेण रोजगार में लगा हुआ नहीं माना जाता जो आंशिक रूप से ही कार्य में लगे हैं अथवा उच्च कार्य की क्षमता रखते हुए भी निम्न प्रकार के लाभकारी व्यवसायों में कार्य करते हैं।

समस्या एवं निदान 
सन् 1919 ई. में अंतरराष्ट्रीय श्रमसम्मेलन के वाशिंगटन अधिवेशन ने बेरोजगारी अभिसमय (Unemployment convention) संबंधी एक प्रस्ताव स्वीकार किया था जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय सत्ता के नियंत्रण में प्रत्येक देश में सरकारी कामदिलाऊ अभिकरण स्थापित किए जाए। सन् 1931 ई. में भारत राजकीय श्रम के आयोग (Royal Commission on Labour) ने बेरोजगारी की समस्या पर विचार किया और निष्कर्ष रूप में कहा कि बेरोजगारी की समस्या विकट रूप धारण कर चुकी है। यद्यपि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रमसंघ का "बेरोजगारी संबंधी" समझौता सन् 1921 ई. में स्वीकार कर लिया था परंतु इसके कार्यान्वयन में उसे दो दशक से भी अधिक का समय लग गया।

सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट में बेरोजगारी (बेरोजगारी) प्रांतीय विषय के रूप में ग्रहण की गई। परंतु द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने के बाद युद्धरत तथा फैक्टरियों में काम करनेवाले कामगारों को फिर से काम पर लगाने की समस्या उठ खड़ी हुई। 
1942-1944 में देश के विभिन्न भागों में कामदिलाऊ कार्यालय खोले गए परंतु कामदिलाऊ कार्यालयों की व्यवस्था के बारे में केंद्रीकरण तथा समन्वय का अनुभव किया गया। अत: एक पुनर्वास तथा नियोजन निदेशालय (Directorate of Resettlement and Employment) की स्थापना की गई है। हम ये रोक सकते हैं।
छिपी बेरोजगारी : छिपी बेरोजगारी से पीडित व्यक्ति वह होता है जो ऐसे दिखाई देता है जेसे कि वह काम में लगा हुआ है, परन्तु वास्तव में ऐसा नही होता।

😥कोरोना वायरस के दौर में बेरोजगारी: नौकरी जाने पर क्या क्या गुजरती है
कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती की खबरें आ रही हैं.
माल्स, रेस्तरां, बार, होटल सब बंद हैं, विमान सेवाओं और अन्य आवाजही के साधनों पर रोक लगी हुई है. फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.
ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.
इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.
बॉस्टन कॉलेज में काउंसिलिंग मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और 'द इंपोर्टेन्स ऑफ वर्क इन अन एज ऑफ अनसर्टेनिटी : द इरोडिंग वर्क एक्सपिरियन्स इन अमेरिका' क़िताब के लेखक डेविड ब्लूस्टेन कहते हैं, "बेरोज़गारी की वैश्विक महामारी आने वाली है. मैं इसे संकट के भीतर का संकट कहता हूँ."
जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.!!
सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें?
सारा कहती हैं, "निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता. जिन लोगों को नौकरी से हटाया जाता है वो अपने मालिकों से नाराज़ रहते हैं. मेरा मानना है कि यह नाराज़गी इसलिए होती है कि आपको लगता है आपकी जगह कोई और ले सकता है, उन्हें आपसे सस्ते में काम करने वाला कोई मिल गया या आपको लगता है कि आपको कभी टीम का हिस्सा ही नहीं माना गया था जबकि आपको हमेशा यही लगता था कि आप टीम के लिए ज़रूरी हैं... वगैरह-वगैरह."

😔ये मत कहो खुदा से,,,,,,मेरी मुश्किलें बड़ी है।
उन मुश्किलों से कह दो,,,,,, मेरा खुदा बड़ा है।👏

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                                         Thanks 👏👏

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